शाबर मन्त्र
डाकिनी शाबर मन्त्र
॥ मंत्र ॥
ॐ स्यार की ख़वासिनी ।
समंदर पार धाइ।
आव, बैठी हो तो आव।
ठाडी हो तो ठाडी आव।
जलती आ।
उछलती आ।
न आये डाकनी तो जालंधर पिर कि आन।
शब्द साँचा।
पिंड कांचा।
फुरे मन्त्र ईश्वरो वाचा।
समंदर पार धाइ।
आव, बैठी हो तो आव।
ठाडी हो तो ठाडी आव।
जलती आ।
उछलती आ।
न आये डाकनी तो जालंधर पिर कि आन।
शब्द साँचा।
पिंड कांचा।
फुरे मन्त्र ईश्वरो वाचा।
विधि: किसी एकांत स्थान पर जहां चौराहा हो वहां पर, रात के समय
कुछ मास मदिरा व मिट्टी क दीपक, सरसों का तेल व सरसों लेकर जाय। काले कपडे पहन कर य नंगे होकर मन्त्र क ११ माला जप करें, सरसों के तेल क दीपक जल कर रेख लें। अब हाथ में सरसों लेकर मन्त्र पढ़कर चारोँ दिशाओं में फेंक दें। और दोबारा से मन्त्र जपना आरम्भ करें, मन में संकल्प रखें कि डाकिनी आ रही है , कुछ हि देर में दौडती, चिलाती ओर उछलती डाकनियां आ जायेँगी। उनका शराब और मॉस प्रदान करना तब अपने मनोवांछित उनको बोल देना।
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